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अम्बेडकर वादी विचार धारा

 🤔🤔🤔 👉🏻 तुमने बोला *बिना पंख के बंदर उड़ गया .*  ◆ हमने मान लिया 👉🏻 तुमने  बोला *बन्दर ने उड़कर आग के विशाल गोले (सूर्य )को  निगल लिया* ◆  हमने बोला हां ठीक है। 👉🏻 तुमने बोला *पृथ्वी गाय के सिंग पर टिकी है* ◆ हमने बोला हां ठीक है...| 👉🏻 तुमने बोला *पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है* ◆हमने बोला हां ठीक है...| 👉🏻 तुमने बोला, *ब्राम्हण ब्रम्हा के मुँह से निकला है, इसलिए श्रेष्ठ ह* ◆  हमने कहा ठीक है...। 👉🏻 तुमने बोला, *शुद्र ब्रम्हा के पैर से पैदा हुये है* ◆  हमने मान लिया...। 👉🏻 तुमनें बोला, *कौरव घी के डिब्बों से पैदा हो गए.* ◆ हमनें यह भी मान लिया। 👉🏻 तुमनें बोला, *सीताजी खेत में हल चलाते समय जमीन से निकल आयी* ◆ हमनें यह भी मान लिया...| 👉🏻 तुमने बोला, *हनुमान कान से पैदा हो गए* ◆ हमनें यह भी मान लिया...। 👉🏻 तुमने बोला, *श्रृंगी ऋषि हिरनी से पैदा हो गए* ◆ हमने यह भी मान लिया. 👉🏻 तुमने बोला, *मकरध्वज मछली से पैदा हुआ* ◆  मैंने यह भी मान लिया. 👉🏻 तुमनें बोला, *हिरण्याक्ष पृथ्वी को उठाकर समुद्र में घुस गया* ◆ हमने यह भी मान लिया. 👉🏻 तुमने बोला, *विष्णू ने वराह (सुवर

कांशी राम के विचार

 एक बार साहब कांशीराम कुछ साथियों के साथ कहीं पैदल जा रहे थे। चलते हुए साहब की नजर गड्ढे में फसे कुत्ते के चार पिल्लों पर पड़ी। साहब को अचानक फिर क्या लगा कि पीछे मुड़े और गड्ढे में से एक पिल्ले को बाहर निकाल कर चलते बने। साथ में चल रहे साथियों ने पूछा साहब यह आपने क्या किया गड्ढे में तो चार पिल्ले थे, लेकिन निकाला आपने केवल एक ही। ऐसा क्यों?  साहब ने बताया;- बाकी तीन उस गड्ढे में आराम से खेल रहे थे लेकिन वह अकेला निकलने का प्रयास कर रहा था। उसको मेरे सहारे की आवश्यकता पहले थी। एक साथी ने पूछा फिर साहब बाकी तीनों का क्या होगा? साहब  बोले:- उनमे से अब जो निकलने का प्रयास करेगा उसको मेरे पीछे वाला कोई निकालेगा। ऐसा निरन्तर चलता रहेगा और एक दिन चारों बाहर निकल जाएंगे।  लेकिन साहब आपने ही चारों को बाहर क्यों नही निकाला हमारा प्रश्न यह है ? साहब बोले आओ बैठो पहले तुमको ही समझा देता हूं। देखो बाकी तीनों का आराम से वहीं पर खेलना यह प्रमाणित करता है कि वो वहाँ सन्तुष्ट थे और जिसको मैंने निकाला वह वहाँ संतुष्ट नही था। जिसको मैंने निकाला अब वह कभी भी उस गड्ढे के आसपास नही जाएगा। इसलिए वह उस गड्ढे

कौटिल्य और मनु धर्मसूत्रों के अनुयायी थे

 कौटिल्य और मनु वर्णव्यवस्था के मामले में एक ही थैली के चट्टे - बट्टे थे । जो मनु ने लिखा , वही कौटिल्य ने भी लिखा ।  कौटिल्य ने जीवन - निर्वाह के लिए ब्राह्मणों को दान और यज्ञ कराना , क्षत्रियों के लिए रक्षा एवं शस्त्रों का प्रयोग , वैश्यों के लिए कृषि - पशुपालन एवं व्यापार तथा शूद्रों के लिए द्विजों की सेवा आदि करना विशिष्ट कर्तव्य बतलाए हैं ।  कौटिल्य और मनु धर्मसूत्रों के अनुयायी थे । मनु ने तो अपनी पुस्तक का नाम '' मनुस्मृति " देकर प्राचीनता का भ्रम पैदा कर दिए , मगर कौटिल्य ने प्राचीनता के चक्कर में अपनी पुस्तक का नाम ही गड़बड़ कर दिए।  जिस भाषा में कौटिल्य ने अर्थशास्त्र लिखी है , उसी संस्कृत में  "अर्थ " के 14 अर्थों में कोई भी अर्थ '' राजनीति '' का अर्थ नहीं देता है , जबकि अर्थशास्त्र राजनीति की किताब है । मतलब कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र राजनीति की किताब है, मगर अर्थ का मतलब संस्कृत में भी राजनीति नहीं होता है। ऐसे ही यह किताब दो नंबर की लग रही है। (संदर्भ:- शामशास्त्री : अर्थशास्त्र , पृ. 06/ मनुस्मृति  : 01, 88- 91 )

अम्बेडकर के राजनीतिक विचार

  चर्चा का कारण हाल ही में पूरे देश में संविधान निर्माता डॉभीमराव अम्बेडकर की 128वीं जयंती मनायी गयी। परिचय भारत के संविधान निर्माता, चिंतक और समाज सुधारक डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई रामजी सकपाल था। वे अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों जैसे- छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में लगा दिया। इस दौरान बाबा साहेब गरीब, दलितों और शोषितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। भीमराव अम्बेडकर की वर्तमान में प्रासंगिकता राजनीतिक क्षेत्रः  डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत के आधुनिक निर्माताओं में से एक माने जाते हैं। उनके विचार व सिद्धांत भारतीय राजनीति के लिए हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं। दरअसल वे एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के हिमायती थे, जिसमें राज्य सभी को समान राजनीतिक अवसर दे तथा धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए। उनका यह राजनीतिक दर्शन व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों पर बल देता है। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि जब तक आर्थिक

बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर दलितों के भागवान

बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर इस दुनिया में न आए होते तो सायद दलितों का उद्धार नहीं होता! इस ब्राम्हण वादी देश भारत में कभी भी दलितों को सम्मान नहीं मिल पाता! हम दलितों को ही नहीं बल्कि ब्राम्हण वाद को छोड़ कर पूरे समाज के लिए एक भगवान के रूप में पैदा होने वाले बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर पूरी दुनिया के लिए कभी ना डूबने वाला सूरज साबित हो गए हैं!